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मंगलवार, 3 जुलाई 2012

मुस्कराहट को जगा दे!!




अंत हो जाना
मन के सारे रुदन का,
पिछले पहर
ज्यू छिपा हो 
सूरज 
और बाकी हो 
उसकी लालिमा,

याद दिलाती हो
समझने को
जो तुममे है उर्जा,
अपने भीतर की
छिपी शक्ति को
समेट मत,


उसे जान,
आत्मा की आवाज़
बुलंद कर,
उसे पहचान,
आत्म मंथन से
मन का 
क्रंदन कर बंद,
हंसा दे उसे,
उसकी मुस्कराहट को जगा दे!!

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

संगीता जी, आपकी बातें हमेशा नव उर्जा से भर जाती हैं, उत्साहवर्धन के लिए आभार...