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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

न दैन्यं न पलायनम!!

मिले जब
अपनों का साथ,
मन ही मन हो
अपनों से अपनी बात.

मेरी भावनाएं हों
या एहसास
अंतर्मन के
बाँटें मन: क्या सच में?

कुछ स्वप्न मेरे
कुछ कही-कुछ अनकही,
कुछ कोने रुबाई के
मुझे आवाज़ दें,

कुछ मेरी कलम से,
मेरा समस्त,शब्द गुंजन..
जो कहे..हमें आवाज़ दे,
और कुछ पन्ने मेरी दराज़ से,

जज़्बात शेष फिर
काव्य मञ्जूषा के
लेखनी का मन
पाखी बन उड़े,
कहानियां कहे,
रचनायें रचे,
ज्यू निर्झर नीर
अबाध बहे,

गौर-तलब
जिंदगी की कतरनें,
शब्द और अर्थ
मेरी भावनाएं
एक बावरा मन,
मनन का स्पंदन,

चलते चलते
दूर से सदा आई...
गीत थे उम्मीद
और वेदना के,
बयाँ जिसने किये
जख्म
जो दिए फूलों ने...

एक प्रयास,
न दैन्यं न पलायनम!!!

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से भावों को लिखा है ..

Unknown ने कहा…

संगीता दी, आपको पता है इस कविता की प्रेरणा हमें अपने ब्लॉग पर उपस्थित ब्लोगिस्ट से मिली,,, कई नाम मैंने उनके शामिल किये हैं!!!