यूं ही एक
मुस्कुराता सा चेहरा;
मेरी आँखों मे
तैर जाता है,
अपनी प्यारी सी
अपनी प्यारी सी
हंसी से,
मुझे सुकून
मुझे सुकून
पंहुचा जाता है,
मगर जब
मगर जब
कभी भी
उस हंसी को,
उस एहसास को
उस एहसास को
ढूंढ पाने को,
उसमे समां जाने को,
महसूस कर पाने;
उसका अपनापन
और पा जाने को
उसमे समां जाने को,
महसूस कर पाने;
उसका अपनापन
और पा जाने को
सारा आकाश,
मै जब
मै जब
बेचैन हो उठती हूँ,
देखती हूँ,
ढूंढती हूँ,
तलाश करती हूँ,
उसे अपने आस पास
मगर
देखती हूँ,
ढूंढती हूँ,
तलाश करती हूँ,
उसे अपने आस पास
मगर
हासिल होता है;
सिर्फ और सिर्फ
सिर्फ और सिर्फ
सिसकती आह ...
क्यों???
क्यों???
जवाब चाहती हूँ
मै आपसे,
क्यों गाएब है
क्यों गाएब है
वो प्यारी मुस्कान,
जो आपके
जो आपके
खुद के होने का एहसास
आपके साथ रखती है,
जुदा नहीं होने देती
जुदा नहीं होने देती
आपको आपसे ही,
क्यों खो से गए है
ये एहसासात!
क्यों खो से गए है
ये एहसासात!
जो आपके अंदर है,
इसलिए उठो,
ढूंढो,
इसलिए उठो,
ढूंढो,
खोजो और
पहचानो
खुद मे छुपी
खुद मे छुपी
उस मुस्कान को,
पा जावोगे जवाब
खुद-ब-खुद
पा जावोगे जवाब
खुद-ब-खुद
इसलिए चाहती हूँ
कि यह
कि यह
पहल आपसे हो ...
9 टिप्पणियां:
महसूस कर पाने; उसका अपनापन और पा जाने को सारा आकाश,
मै जब बेचैन हो उठती हूँ,
देखती हूँ, ढूंढती हूँ, तलाश करती हूँ,
उसे अपने आस पास मगर हासिल होता है सिर्फ और सिर्फ सिसकती आह ...
बढ़िया लिखा है आपने ....
दर्द साफ झलकता है आपकी इन पंक्तियों में .....
इसे भी पढ़े :-
(आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html
देखती हूँ, ढूंढती हूँ,
तलाश करती हूँ,
उसे अपने आस पास
मगर हासिल होता है
सिर्फ और सिर्फ
सिसकती आह ...
बहुत खूबसूरती से अपने एहसासों को लिखा है ....लंबी पंक्ति की जगह ऐसे टुकड़ों में लिखो तो ज्यादा प्रभावशाली लगेगा ...:):)
शुभकामनायें
बहुत सुन्दर रचना , ...!!!
शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से मैं भी आपके साथ हूँ , इस उम्मीद से की सफ़र शायद दोनों के लिए कुछ आसान हो .....मिलते रहेंगे
अथाह...
!!!
धन्यवाद् संगीता जी, आपके कहे अनुसार, मैंने पंक्तियूं मैं सुधार किया है, आपके सुझाव हमेशा से ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं!
ओहो रजनीश जी आपको तो सुना ही है, शब्दों मैं पर गुना नहीं है भावों मे! आज आप स्वं ही आ गए मुझे अपना मार्गदर्शन देने!
धन्य भाग्य हमारे! जो आप जैसे महानुभावों का सानिध्य हमें मिले!
मीणा जी आपका ही हार्दिक धन्यवाद! आते रहिये उत्साह वर्धन करिये कुछ कहिये स्वाम भी समझिये हमें भी, कुछ समझाईये और
अपनी भावनाओं को दिशा दो, कम्जोरिओं को ही साहस और संबल बना डालो. दुनिया दयालु - कृपालु नहीं बहुत ही कठोर है, निर्दय्यी है ख़ास कर महिलाओं के लिए. ऐसी योग्यता का विस्तार करो की.......दुसरे सहारा मांगे. नेत्रित्व को विकसित करने की आवश्यकता है...................
आदरणीय डॉ. श्री तिवारी जी,
आपने विज्ञान और तकनीक को इतने सुन्दर ढंग दे परिभाषित करते हुए निर्गुण निराकार को सगुण साकार रूप में अवतरित कर आज के अश्वत्थामा के 'ब्रह्मास्त्र' की दिशा मोड़ने का सजीव चित्रण किया है।
आपको रचना के लिए कोटिशः बधाई ....
Bahut hi Badiya kavya rachna ki hai aapne.. khoobsurat.
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